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राहुल गांधी की यात्रा को INDIA ब्लॉक का सपोर्ट नहीं मिला तो कांग्रेस अकेली पड़ जाएगी

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मिलिंद देवड़ा का कांग्रेस छोड़ना राहुल गांधी के लिए छोटा झटका लगता है, बड़ा झटका तो लगता है INDIA ब्लॉक के नेता देने वाले हैं. हो सकता है, नीतीश कुमार की नाराजगी की और भी वजहें हों, लेकिन जिस लहजे में जेडीयू नेता केसी त्यागी कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, वो अच्छे संकेत तो कतई नहीं हो सकते. 

मणिपुर से शुरू हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 20 मार्च को मुंबई में खत्म होने वाली है. लेकिन भारत जोड़ो न्याय यात्रा के पहले ही दिन राहुल गांधी के करीबियों में शामिल रहे, मिलिंद देवरा ने कांग्रेस छोड़ दी. कुछ कुछ वैसे ही जैसे गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. संयोग भी देखिये कि वहीं के नेता ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जहां राहुल गांधी अपनी यात्रा खत्म करने वाले होते हैं. पिछली यात्रा जम्मू-कश्मीर में खत्म हुई थी, और ये मुंबई में. लगातार दो लोक सभा चुनाव हार चुके मिलिंद देवड़ा इस बार भी मुंबई साउथ सीट से ही चुनाव लड़ना चाहते थे, जबकि उस पर उद्धव ठाकरे दावेदार हैं, क्योंकि 2014 और 2019 दोनों बार उनकी पार्टी के अरविंद सावंत ही चुनाव जीते थे. 

मिलिंद देवड़ा के मामले में कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि यात्रा पर उसका कोई असर नहीं होने वाला है. वैसे विपक्षी खेमे में भी राहुल गांधी की न्याय यात्रा को समर्थन भी मुंबई वाली छोर से ही आया है. एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने राहुल गांधी की यात्रा का खुल कर बचाव किया है. कांग्रेस के लिए फिक्र वाली बात ये है कि जेडीयू नेता जिस तरह की बातें यात्रा को लेकर कर रहे हैं, बाकी सब खामोशी बरत रहे हैं. बाकियों की खामोशी का मतलब तो यही हुआ कि जेडीयू उनके ही मन की बात कर रही है.

राहुल गांधी की पिछली यात्रा खुद उनके लिए भी और कांग्रेस के हिसाब से भी काफी फायदेमंद रही, लेकिन तब और अब में फर्क भी तो है. ये यात्रा 2024 के आम चुनाव की घोषणा होने से कुछ ही दिनों पहले शुरू हुई है. 

संयोजक का पद ठुकराने के साथ ही INDIA ब्लॉक के नेतृत्व के लिए लालू यादव के नाम का प्रस्ताव रखना भी तो नीतीश कुमार की नाखुशी जाहिर करने का ही उदाहरण है. एक तरफ नीतीश कुमार गठबंधन की बैठकों में अपनी चाल चल रहे हैं, और बाहर मीडिया के जरिये केसी त्यागी बार बार राहुल गांधी की यात्रा पर सवाल उठा रहे हैं. अब तो ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार की ही किसी न किसी दिन ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के नेता की नाराजगी भी सामने आ सकती है – और ये चीज कांग्रेस के लिए चुनावों में खतरनाक हो सकती है.

सिर्फ नाम और रूट बदला है, यात्रा में नया कुछ भी नहीं है

जैसे राहुल गांधी नयी यात्रा में भी पुरानी बातें ही दोहरा रहे हैं, बीजेपी की तरफ से भी वैसी ही प्रतिक्रिया आ रही है. यात्रा से पहले फेसबुक पोस्ट के जरिये राहुल गांधी अपनी यात्रा को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक न्याय की लड़ाई बता चुके हैं, और बार बार यही दोहराया जा रहा है कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में है. बिलकुल वैसे ही बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला भारत जोड़ो न्याय यात्रा को राहुल गांधी की 15वीं रीलॉन्च यात्रा बता रहे हैं.

लोक सभा चुनाव सिर है, और कांग्रेस कह रही है कि ये यात्रा चुनावी नहीं, बल्कि वैचारिक यात्रा है. भारत जोड़ो यात्रा को भी कांग्रेस की तरफ से गैर राजनीतिक बताने की कोशिश हुई, लेकिन समाज का वही तबका राहुल गांधी के साथ नजर आया जो कांग्रेस का समर्थक है, और राजनीतिक दलों का व्यवहार भी वैसा ही देखा गया. 

आखिर कांग्रेस को क्यों लगता है कि यात्रा को गैर-राजनीतिक बता भर देने से लोग मान लेंगे? क्या ये कांग्रेस नेतृत्व का कंफ्यूजन है या फिर कोई रणनीति? क्या ऐसा करके कांग्रेस अपने ही लोगों को कन्फ्यूज नहीं कर रही है? 

राहुल गांधी की यात्रा को गैर राजनीतिक बताना भले ही कांग्रेस का राजनीतिक बयान हो, लेकिन उसका नतीजा बिलकुल वैसा ही लगता है – राजनीतिक तौर पर फायदे की बात कौन कहे, विपक्षी दलों के रवैये से तो ऐसा लगता है, नुकसान ही होने वाला है. 

मणिपुर के थौबल में यात्रा की शुरुआत के वक्त राहुल गांधी ने सहानुभूति जताते हुए कहा कि मणिपुर के लोग जिस दर्द से गुजरे हैं, उन्हें उसकी फिक्र भी है, और वो दर्द को समझते भी हैं. बोले, ‘हम वादा करते हैं कि वही शांति, प्यार, एकता को वापस लाएंगे, जिसके लिए ये राज्य हमेशा जाना जाता रहा है.’

बेशक यात्रा में लोग शामिल हो रहे हैं, अभी तो कांग्रेस समर्थकों की भीड़ है, हो सकता है महाराष्ट्र में फिर से सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे कदम से कदम मिलाते देखने को मिलें, लेकिन क्या बाकी राज्यों में ऐसा ही देखने को मिलेगा? आगे जो भी हो, अभी तो ये सबसे बड़ा सवाल है. 

यात्रा नयी जरूर है. नाम भी नया है, लेकिन बातें वही पुरानी है. एजेंडा वही पुराना ही है. निशाने पर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहना भी स्वाभाविक है, आम दिनों में ये सब चल जाता है, लेकिन चुनाव के वक्त क्या ये सब लोगों का समर्थ दिला पाएगा. बड़ा सवाल यही है. 

लगता नहीं, विपक्ष के नेता इस बार भी साथ आएंगे

INDIA ब्लॉक की वर्चुअल मीटिंग का सबको इंतजार रहा होगा, लेकिन हासिल क्या रहा? राहुल गांधी की तरफ से नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन वो स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए. बल्कि, अपनी चाल चलते हुए सबको चौंका दिया, ‘लालू जी को अध्यक्ष बनाइये.’

लालू यादव सुने और चुप रहे. नीतीश कुमार के इनकार के बाद जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह ने दखल देते हुए कहा कि वो पार्टी के भीतर प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे. 

नीतीश कुमार के रिएक्शन को देखें, तो ऊपर से लगता है ये सीधे सीधे कांग्रेस नेतृत्व को जवाब देने की कोशिश है, लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी तरफ से एक साथ पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी लपेटने की कोशिश की है. 

आपको याद होगा, INDIA ब्लॉक की ही एक मीटिंग में ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का सुझाव दिया गया था. ममता बनर्जी के इस प्रस्ताव के समर्थन में अरविंद केजरीवाल भी खड़े थे. मीटिंग से ठीक पहले दोनों नेताओं की मुलाकात भी हुई थी, और उसी दौरान ये राजनीतिक दांव तय हुआ था. 

ममता और केजरीवाल ने ऐसी चाल चली जिससे राहुल गांधी और नीतीश कुमार दोनों को गठबंधन के नेतृत्व की रेस से बाहर कर दिया जाये. नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव रख कर राहुल गांधी भी मिलती जुलती ही चाल चलने की कोशिश कर रहे हैं – लेकिन ये राजनीति किस रास्ते पर बढ़ रही है? 

क्या ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और अब नीतीश कुमार का रुख देख कर लगता है कि कांग्रेस INDIA ब्लॉक की नेता बनी रहेगी और सहयोगी दल साथ में खड़े रहेंगे? ये सब तो चल ही रहा है, कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ तकरार की एक और वजह भी खोज ली है. भारत जोड़ो न्याय यात्रा.

न्याय यात्रा से कांग्रेस को मिलेगा क्या?

INDIA ब्लॉक को खड़ा करने के मामले में कांग्रेस की भूमिका पर तो नीतीश कुमार पहले से ही सवाल उठा रहे हैं,  लेकिन नीतीश कुमार और उनके साथियों की चिंता भी बहुत वाजिब लग रही है. देश में जो राजनीतिक माहौल बना हुआ है, जेडीयू नेता केसी त्यागी का डर कहीं से भी अनायास या अनावश्यक नहीं लग रहा है. वो कह रहे हैं, आप दिल्ली में बैठ कर महसूस करें न करें… कोई गांव नहीं बचा है जहां राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर, बीजेपी की तैयारियों को लेकर, बूथ स्तर पर बैठक नहीं हो रही होगी.

उद्धव ठाकरे से बातचीत में नीतीश कुमार ने 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के बाद चुनावों की घोषणा की संभावना जताई थी. उसी बात को आगे बढ़ाते हुए केसी त्यागी भी पूछ रहे हैं कि अचानक चुनावों में उतरना पड़ा तो क्या होगा? जेडीयू को इस बात की भी फिक्र है कि राहुल गांधी जैसा बड़ा नेता के कैंपेन से दूर यात्रा में व्यस्त रहने का तो नुकसान ही होगा. 

एनसीपी नेता सुप्रिया सुले का मानना है कि कांग्रेस को स्थाई अध्यक्ष मिल जाने के बाद कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिये. मल्लिकार्जुन खरगे के रहते कोई दिक्कत नहीं आने वाली है, और राहुल गांधी फोन पर तो रहेंगे ही. 

कांग्रेस नेता भी अपनी तरफ से आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं. ये समझाने की कोशिश है कि पूरी कांग्रेस यात्रा में ही नहीं लगी है, चुनाव की तैयारियां भी अपनी जगह हो रही हैं. कांग्रेस की तरफ से भी ये समझाने की पूरी कोशिश हो रही है कि न्याय यात्रा का चुनावी तैयारियों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. 

यात्रा को लेकर केसी त्यागी जो मुद्दे बार बार उठा रहे हैं, कांग्रेस की मुश्किल उसी में महसूस की जा सकती है. केसी त्यागी पहले भी सवाल उठा चुके हैं कि यात्रा को लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने सहयोगी दलों के साथ चर्चा क्यों नहीं की? अगर अकेले की यात्रा करनी थी तो ये यात्रा चुनावों से आगे पीछे भी हो सकती थी. ये बात भी सही है, अभी तो यात्रा गठबंधन के साथियों के साथ ही होनी चाहिये. 

और इस प्रसंग में केसी त्यागी की एक ही बात कांग्रेस के लिए चिंता की वजह लगती है, जब वो ये समझाने की कोशिश करते हैं कि अगर ये यात्रा INDIA ब्लॉक के बैनर तले हो रही होती तो कितना अच्छा होता. बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव भी राहुल गांधी के साथ यात्रा करते, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव साथ होते, आएलडी नेता जयंत चौधरी भी साथ साथ चलते. फिर तो वास्तव में विपक्ष मजबूत नजर आता? कुछ देर के लिए तो ऐसा लगता है, जैसे केसी त्यागी सिर्फ जेडीयू नहीं, INDIA ब्लॉक के कई दलों के भी प्रवक्ता बन गये हैं. और इस बात की सबसे ज्यादा चिंता तो कांग्रेस को ही होनी चाहिये. नीतीश कुमार के राजनीति पैंतरे से कांग्रेस भी वाकिफ तो है ही. 

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